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Sunday, February 14, 2010

स्वयं का मूल्यांकन और आस्था सदैव बनाऐ रखें

प्रत्येक व्यक्ति की जिन्दगी में उतार चढाव आते रहते है कई बार ऐसा होता है कि आप के द्वारा किये जाने वाले कार्य एक के बाद एक असफल होते जाते हैं जिससे उसका विश्वास डोल उठता हैं, उसे स्वयं की क्षमताओ और योग्यताओं पर संदेह होने लगता है वह स्वयं का मूल्यांकन कम करने लगता है और मानने लगता है कि दूसरे भी ऐसा ही सोचते हैं, जबकि खरी currency की कीमत कभी कम नहीं होती।

मुझे प्रसिध्द Trainer Jack Kenfeild द्वारा बताई एक घटना याद आती है। उन्होंने बताया कि एक सेमिनार में उन्होंने एक सौ डालर का नया नोट निकाला और लोगों से पूछा कि कौन इसे लेना चाहेगा। बहुत लोगों ने अपना हाथ खड़ा किया फिर उन्होंने नोट को कई मोडकर जूते के नीचे दबाया और निकालकर पूछा क्या इसकी कीमत कम हुई, लोगों ने कहा , फिर उन्होंने उस नोट को धूल मिट्टी डालकर गन्दा कर दिया और लोगो से पूछा कि कौन इसे लेना चाहेगा पहले से बहुत कम लोगो ने हाथ खड़ा किया। फिर से लोगों से पूछा क्या इसकी कीमत में कोई कमी आई सब ने कहा नहीं तब उन्होंने बताया कि इसी तरह खरे गुण वाले खरे इंसान की कीमत में कभी कमी नहीं होती भले ही बहुत से नासमझ लोग उनका साथ छोड दें।

इसी तरह हमें भगवान पर आस्था कभी नहींछोड़नी चाहिए। धोखे से भी अपने नुकसान या अप्राप्ति दोष प्रभु पर न डाले सहज भाव से उसकी इच्छा को सर्वोपरि मानॅ । क्या हम नौकरी मॅ अपने मालिक को गाली देकर उसकी कृपा पा सकते हैं ?

एक नाविक था वह प्रभु का अनन्य भक्त था एक बार अन्य साथियों व यात्रियों के साथ जहाज से बड़ी यात्रा पर निकला एक रात जब उसकी प्रार्थना का वक्त हुआ तो उसने देखा कि पूरे जहाज में जश्न और नाच गाना चल रहा है तब वह प्रार्थना करने जहाज से बंधी एक छोटी नाव में चला गया अभी वह आँख बंद कर प्रार्थना कर रहा था कि एक बड़ी लहर आकर उसे और नांव को बहुत दूर फेंक दिया और देखते ही देखते जोर की लहरॅ चलने लगी और जहाज उसके आंख से ओझल हो गया सुबह उसने पाया की वह एक टापू पर पड़ा हैं उसने मन ही मन भगवान को धन्यवाद किया की नाव पर होने के कारण वह जिन्दा बचा जब उसने इधर उधर देखा तो उसे नाव के टुकडे दिखाई दिये उसने विचार किया कि पहले खाने की चीज ढूंढकर फिर नाव की मरम्मत करेगा वह नाव के टुकडे को खींचकर ले गया और शिकार करने निकला दो घंटे के प्रयास के बाद वह कुछ मछलियां पकड़ पाया कच्ची मछली वह नहींखा सकता था अतएव् उसने सोचा की नाव वाली जगह जाकर वह कुछ जुगाड़ करेगा जब वह नाव के टुकडे वाली जगह पहुंचा तो उसने देखा कि वह टूकड़ॅ धू-धू कर जल रहे हैं अब उसे लगा कि वह कभी नाव बनाकर लौट नहींपायेगा परन्तु उसने ईश्वर का धन्यवाद देकर उस आग में मछली भूंज कर खाया और थकान से उसकी नींद लग गई अचानक किसी के झकझोड़ने से नींद खुली उसने देखा कि एक दूसरे जहाज का कप्तान खड़ा है जो उसको लेने आया हैं। कप्तान ने उसे बताया कि कल रात बहुत जोर समुद्री तूफान आया जिसमें एक जहाज डूब गया ( नाविक वाला ) जब हम देख खोज कर हार गये और हमें लगा कोई जिन्दा नहीं बचा तब हमें दूर से आग और धुएँ की लकीर दिखाई पडी ( नाव के टुकड़ो में लगी ) और हम तुमको ढूढंते हुए यहाँ चले आये नाविक ने दोनों हाथ उठाकर प्रभु को धन्यवाद दिया।

जिन्दगी में बहुत सी बाते हमें नुकसान दायी लगती है और अंतत: वह एक सुपरिणाम का हिस्सा हो सकती है अतएव् आस्था बनायॅ रखॅ।

राजा बनने की सोचे

जो व्यक्ति जिस तरह की सोच रखता हैं तथा लागातार एक ही तरह की सोच बनाये रखता हैं, वह उसी तरह का बन जाता हैं। हमने बचपन से ही अलग अलग व्यक्तियों के बारे में अलग अलग तरह की बातें सुनी व देंखी होती हैं पर बडे होकर हम उनका विशलेषण कर उपयोगी बातें अपनी जिन्दगी में ढ़ालनॅ का प्रयास नहीं करते जो कि हमें अवश्य करनी चाहिये।

हमने हमेशा सुना कि किसी गरीब व्यक्ति की लाटरी निकल गई या उसे जमीन बेचकर उसने डेर सारे पैसे मिला पर कुछ साल बाद हमॅ वह व्यक्ति वापस गरीबी में दिखाई देता है दिखाइे देता है वही दूसरी तरफ यह पाते है कि एक धनवान व्यक्ति व्यापार में घाटे के कारण गरीब हो गया और कुछ सालों बाद जब हम उससे मिलते है तो वह पुन: धनवान दिखाई देता है। ये बातॅ हो सकती है कुछ लोगो पर लागु न हो पर अधिकतर लोगो पर लाग़ू होती है। इसका सीधा संबंघ सोच से है। व्यक्ति केवल पैसे से अमीर गरीब नहीं होता सोच से भी अमीर गरीब होता है। पुराने जमाने में ( क्षत्रिय की मां ) अपने बेटे को वीरॉ की काहानियां सुनाया करती थी ताकि बेटे वीर की तरह सोचे और वीर बने।

हमें भी अपने अग्रणी व्यक्ति की तरह सोचनी चाहिये अर्थात इस Field के राजा की तरह लगातार सोचे तब हम मानसिक रुप से अपने कार्य क्षेत्र के अग्रणी बनने के लिये तैयार रहॅ।

एक राजा का जन्म दिन था सुबह जब वह घूमनॅ निकला तो उसने तय कर रखा था कि वह उससे मिलने वाले पहले व्यक्ति को पुरी तरह खुश व संतुष्ट करेगा उसे एक भिखारी मिला जो सुरत- शक्ल से बहुत गरीब दिखाई दे रहा था। भिखारी ने राजा से एक तांबे का सिक्का भीख में माँगा राजा ने भिखारी की तरफ एक तांबे का सिक्का उछाल दिया तांबे का सिक्का भिखारी के हाथ से छूटकर एक नाली में जा गिरा भिखारी नाली में हाथ डाल ताबें का सिक्का ढुढंने लगा। राजा ने उसे बुलाकर दुसरा तांबे का सिक्का दिया भिखारी खुश होकर वह सिक्का अपनी जेब में रख लिया और वापस जाकर नाली में गिरा सिक्का ढुढ़ने लगा। राजा को लगा की भिखारी बहुत गरीब है। तो उसने भिखारी को बुलाकर चांदी का एक सिक्का दिया भिखारी राजा की जय जयकार करता फिर नाली में सिक्का ढुढंने लगा। राजा को लगा कि भिखारी संतुष्ट नहीं है। सो उसने भिखारी को एक सोने का सिक्का दिया। भिखारी खुशी से झुम उठा और वापस भाग कर अपना हाथ नाली की तरफ बढाने लगा राजा को बहुत खराब लगा उसे खुद से तय की गई बात याद आ गयी की आज उसे उस व्यक्ति को खुश एवं संतुष्ट करना है। उसने भिखारी को बुलाया और कहा कि में तुम्हें अपना आधा राज पाट देता हूँ अब तो खुष व संतुष्ट हो। भिखारी ने कहा मै खुश और संतुष्ट तभी हो सकूंगा जब नाली का वह भाग जिसमें तांबे का सिक्का गिरा है। वह मेरे हिस्से में आये।

जो व्यक्ति अपनी सोच में परिवर्तन नहीं लाता है। वह व्यक्ति आगे नहीं बढ सकता। इसलिए अग्रणी व्यक्ति की तरह सोचें। यदि आपको राजा बनना है। तो लगातार सोचे केवल राजा कि तरह सोचें।

मधुर चितलांग्या

हम निष्काम कर्मयोगी बनें

अर्थात गीता में बताये अनुसार अपना कर्म पूर्ण समर्पण से करें और फल की चिंता न करें।

राजनांदगांव में बचपन से बाल समाज गणेश समिति द्वारा अपने घर के सामने कराये गये महात्माओं के प्रवचन को मैं सुनता रहा। वे महात्मा कहानियों के माध्यम से बहुत-सी बातें समझाते थे जो आज भी समयोचित है। कई सवाल के जवाब बचपन में झांकने पर मिल जाते है ।

एक बार मैं अपने स्व. पिता के परम मित्र श्री महेश्वर प्रसाद जी पांडे को अपने यहां पूजा के लिये भिलाई बुलाया था। वे कर्मकाण्ङी विद्वान है। चर्चा में अचानक मुझसे एक सवाल निकल गया, ईश्वर दयालु है या न्यायप्रिय है ? इस चर्चा में कई लोग शामिल हुए । किसी ने कहा 'ईश्वर न्यायप्रिय है तब दुसरे ने कहा यदि वह जज कि तरह कार्य करेगा और दयालु नहीं तो कैसा ईश्वर ? तीसरे ने कहा कि वह दयालु है तब चौथे ने कहा यदि वह न्याय न करें तो कैसा ईश्वर ?

अब मैं, महेश्वर महाराज जी, और अन्य सभी यह मान गये थे कि ईश्वर दयालु है और न्यायप्रिय भी ? सब बड़ी उलझन में थे। अचानक मुझे बचपन मे एक संत कि बतार्इ्र बात याद आ गई उन्होने बताया था एक व्यक्ति ऊपर के सवाल का जवाब न मिलने पर बहुत दुखी था। वह एक मौलवी के पास गया। मौलवी ने बताया कि अल्ला रहम दिल जरुर है पर वे न्यायप्रिय है। गलत करने वाले को सजा देते है और अच्छा करने वाले को आबाद करते है। फिर वह व्यक्ति चर्च के पादरी के पास गया तो उसने कहा - ईश्वर न्याय जरुर करता है पर वह दयालु होता है। प्रभु ईशु ने तो अपने को सूली चढ़ाने वालो के लिए भी ईश्वर से दया मांगी। अब उस व्यक्ति को यह बात समझ में आ गयी की ईश्वर दयालु और न्यायप्रिय दोनो है। पर कब और कैसे ? वह व्यक्ति संत गोन्दवलकर जी महाराज के पास पहँचा। तब महाराज ने उसे बताया की ईश्वर सकाम भक्तो के लिए न्यायप्रिय तथा निष्काम भक्तॉ के लिए दयालु है। अर्थात यदि कोई ईश्वर की पूजा आराधना कर उससे प्रतिफल की आशा करता है तो प्रभु गुण दोष के आधार पर उसे न्याय देते है और यदि कोई स्वयं को समर्पित करें बिना स्वार्थ के ईश्वर की आराधना करता है तो प्रभु उस पर दया भाव रखते है। मेरी यह बात सुनकर उपस्थित सभी लोगॉ ने गर्म जोशी से जोरदार तालियाँ बजाई।

सचमुच यदि हम केवल फल प्राप्ति के लिए कार्य करते है तो प्रकृति गुण दोष के आधार पर प्रतिफल देती है। किसी भी अच्छे लाभ के लिए मेहनत करने वाले को गुण धर्म के आधार पर लाभ अवश्य मिलता है। यदि आप पूजा की तरह, आस्था से समर्पण भाव से बिना फल की चिंता किये काम करते है तो प्रकृति आपकी सहयोगी बन जाती है। आपके लिये आपके साथ कार्य करती है। आप पर प्रेम बरसाती है, इसलिए आप निष्काम कर्मयोगी बनें।

Monday, February 1, 2010

स्कुल की पिटाई

एक दिन चर्चा के दौरान मेरे बेटे ने मुझसे कहा - आपके समय के शिक्षक बहुत क्रूर होते थे और बहुत मारते भी थे पर सुना है आप बहुत सीधे-साधे और पढ़ाई में अच्छे थे ,क्या आपने भी कभी पिटाई खाई थी ?

वह मुझे बचपन मॅ ले गया, जिस समय सीखी गई कई बातें जिन्दगी में हमॅशा अपनी छाप बनाए रखती हैं। तब मैनॅ बताया- छठवी में एक शिक्षक हुआ करते थे श्री टहन गुरिया सर , गोरे चिट्टे-ऊँचे से लडके उन्हे दबी जुबान में सफेद हाथी कहा करते थे। वे भाषा पढाते थे पूरे बच्चे उनके डंडे के नाम से कांपते थें।

वे कभी-कभी हमारी कक्षा भी लेते थे और उन्हे मैं सबसे ज्यादा प्रिय था। वे जब कक्षा के सामने से गुजरते थे तो यदि एक भी बच्चा जोर से हल्ला करते या बदमाशी करते दिख गया तब वे पूरी कक्षा को हाथ पर डंडे से मारते थे। यदि किसी ने विरोध जताया की मेरी गलती नहीं है तो उसे अतिरिक्त एक डंडा और मारते थे। और पुराने बदमाश लड़को को भी एक डंडा अतिरिक्त मिलता था ( जिन्होने एक से ज्यादा बार बदमाशी की ) पहली बार मैने भी विरोध किया और अतिरिक्त डंडा खाया। अगली 5 बार चुपचाप आंखे झुकाकर मै डंडा खाने हाथ बढा दिया करता था। कक्षा के बाद अपने दोस्त दीपक सोनी से मैने पूछा कि तुमने आज सबको मार क्यों खिलाई, वह हंसते हुये बोला कक्षा के 2 लड़के हमें बहुत परेशान करते है और उनकी बदमाशी के कारण हमें बेवजह डंडे खाने पड़ते थे। आज मैंने उन्हें बेवजह पिटवाने के लिए जानबूझकर बदमाशी की, कल तुम करना ताकि उन्हें और दंड मिले।

उसी दिन किसी कार्य से मुझे सर के घर जाना पड़ा मैं डरते-डरते अंदर गया तब उन्होने मुझे बहुत प्यार से बिठाया मेरे न कहने के बावजूद दूध पिलाया और अच्छी बातें करने लगे तब हिम्मत करके मैनॅ उनसे पूछ लिया कि सर आप इतने अच्छे है फिर भी आप इस तरह से सजा क्यों देते हैं। वे बोले बेटा मै कुछ बातें सब बच्चो को सिखाना चाहता हूं जो कि पूरी जिन्दगी काम आयेगी।

1- आपको आपकी गलती की सजा जरूर मिल सकती हैं।

2- आपकी गलती की सजा आपके मित्र एवं प्रियजनों को भी मिल सकती हैं।

3- आप बेगुनाह है तब भी दूसरे की गलती की सजा आपको मिलने पर आपको चुपचाप सहना आना चाहियें।

4- आपका पूर्व का रिकार्ड आपको बिना गलती होने पर भी दुगुनी सजा दिलवा सकता हैं।

इन बातों ने मुझ पर गहरी छाप छोड़ी और समय समय पर मैं उन्हें याद कर अपने को समझाईश देता हूं। यह बात मैं अपने बेटे को बोल कर नहीं समझा पाता पर उसके व अन्य सभी लोगों के लिये लिख रहा हूं ताकि वे इसे बार-बार पढ़कर इसे आत्मसात कर लें और जीवन में कभी भी उपरोक्त चारों बातें मन को संयमित रखने के काम आ सकें।